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Guru Poonam 2014 Darshan
गुरु पूनम सत्संग - दर्शन २०१४ की झलके
अपना ईश्वरीय वैभव जगाने का पर्व : गुरुपूर्णिमा (पूज्यश्री की दिव्य अमृतवाणी)
गुरुपूर्णिमा का दूसरा नाम है व्यासपूर्णिमा । वेद के गूढ रहस्यों का विभाग करनेवाले कृष्णद्वैपायन की याद में यह गुरुपूर्णिमा महोत्सव मनाया जाता है । भगवान वेदव्यास ने बहुत कुछ दिया मानव-जाति को । विश्व में जो भी ग्रंथ हैं, जो भी मत, मजहब, पंथ हैं उनमें अगर कोई ऊँची बात है, बडी बात है तो व्यासजी का ही प्रसाद है । व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम् ।
एक लाख श्लोकों का ग्रंथ ‘महाभारत' रचा उन महापुरुष ने और यह दावा किया कि जो महाभारत में है वही और जगह है व जो महाभारत में नहीं है वह दूसरे ग्रंथों में नहीं है : यन्न भारते तन्न भारते । चुनौती दे दी और आज तक उनकी चुनौती को कोई स्वीकार नहीं कर सका । ऐसे व्यासजी, इतने दिव्य दृष्टिसम्पन्न थे कि पद-पद पर पांडवों को बताते कि अब ऐसा होगा और कौरवों को भी बताते कि तुम ऐसा न करो । व्यासजी का दिव्य ज्ञान और आभा देखकर उनके द्वारा ध्यानावस्था में बोले गये ‘महाभारत' के श्लोकों का लेखनकार्य करने के लिए गणपतिजी राजी हो गये । कैसे दिव्य आर्षद्रष्टा पुरुष थे !
ऐसे वेदव्यासजी को सारे ऋषियों और देवताओं ने खूब-खूब प्रार्थना की कि हर देव का अपना तिथि-त्यौहार होता है । शिवजी के भक्तों के लिए सोमवार और शिवरात्रि है, हनुमानजी के भक्तों के लिए मंगलवार व शनिवार तथा हनुमान जयंती है, श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए जन्माष्टमी है, रामजी के भक्तों के लिए रामनवमी है तो आप जैसे महापुरुषों के पूजन-अभिवादन के लिए भी कोई दिन होना चाहिए। हे जाग्रत देव सद्गुरु ! हम आपका पूजन और अभिवादन करके कृतज्ञ हों । कृतघ्नता के दोष से विद्या फलेगी नहीं ।
गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः... जैसे ब्रह्मा सृष्टि करते हैं ऐसे आप हमारे अंदर धर्म के संस्कारों की सृष्टि करते हैं, उपासना के संस्कारों की सृष्टि करते हैं, ब्रह्मज्ञान के संस्कारों की सृष्टि करते हैं । जैसे विष्णु भगवान पालन करते हैं ऐसे आप हमारे उन दिव्य गुणों का पोषण करते हैं और जैसे शिवजी प्रलय करते हैं ऐसे आप हमारी मलिन इच्छाएँ, मलिन वासनाएँ, मलिन मान्यताएँ, लघु मान्यताएँ, लघु ग्रंथियाँ क्षीण कर देते हैं, विनष्ट कर देते हैं । आप साक्षात् परब्रह्मस्वरूप हैं... तो गुरु का दिवस भी कोई होना चाहिए । गुरुभक्तों के लिए गुरुवार तय हुआ और व्यासजी ने जो विश्व का प्रथम आर्ष ग्रंथ रचा ‘ब्रह्मसूत्र', उसके आरम्भ-दिवस आषाढी पूर्णिमा का ‘व्यासपूर्णिमा, गुरुपूर्णिमा' नाम पडा ।
तो इस दिन व्यासजी की स्मृति में ‘अपने-अपने गुरु में सत्-चित्-आनंदस्वरूप ब्रह्म-परमात्मा का वास है', ऐसा सच्चा ज्ञान याद करके उनका पूजन करते हैं । गुरुपूनम पर हम तो अपने गुरुदेव को मन-ही-मन स्नान करा देते थे, मन-ही-मन गुरुदेव को वस्त्र पहना देते, मन-ही-मन तिलक करते और सफेद, सुगंधित मोगरे के फूलों की माला गुरुजी को पहनाते, फिर मन-ही-मन आरती करते । और फिर गुरुजी बैठे हैं, उनका मानसिक दर्शन करते- करते उनकी भाव-भंगिमाएँ सुमिरन करके आनंदित होते थे, हर्षित होते थे । हम तो ऐसे व्यासपूनम मनाते थे ।अपने व्यासस्वरूप गुरु के ध्यान में प्रीतिपूर्वक एकाकार... फिर मानों, गुरुजी कुछ कह रहे हैं और हम सुन रहे हैं ।
गुरुजी प्रीतिभरी निगाहों से हम पर कृपा बरसा रहे हैं, हम रोमांचित हो रहे हैं, आनंदित हो रहे हैं । हम गुरुजी से मानसिक वार्ताएँ करते थे और अब भी यह सिलसिला जारी है । गुरुदेव का शरीर नहीं है तब भी गुरुतत्त्व तो व्यापक है, सर्वत्र है, अमिट है ।
व्यासपूर्णिमा का पर्व हमारी सोयी हुई शक्तियाँ जगाने को आता है । हम जन्म-जन्मांतरों से भटकते-भटकते सब पाकर सब खोते-खोते कंगाल होते आये । यह पर्व हमारी कंगालियत मिटाने, हमारे रोग-शोक को हरने और हमारे अज्ञान को हर के भगवद्ज्ञान, भगवत्प्रीति, भगवद्रस, भगवत्सामथ्र्य भरनेवाला पर्व है । हमारी दीनता- हीनता को छीनकर हमें ईश्वर के वैभव से, ईश्वर की प्रीति से, ईश्वर के रस से सराबोर करनेवाला पर्व है गुरुपूर्णिमा । व्यासपूर्णिमा हमें स्वतंत्र सुख, स्वतंत्र ज्ञान, स्वतंत्र जीवन का संदेश देती है, हमें अपनी महानता का दीदार कराती है ।
मानव ! तुझे नहीं याद क्या, तू ब्रह्म का ही अंश है । व्यासपूर्णिमा कहती है कि तुम अपने भाग्य के आप विधाता हो, तुम अपने आनंद के स्रोत आप हो । सुख हर्ष देगा, दुःख शोक देगा लेकिन ये हर्ष-शोक आयेंगे-जायेंगे, तुम तुम्हारे आनंदस्वरूप को जगाओ फिर सब बौने हो जायेंगे । यह वह पूनम है जो हर जीव को अपने भगवत्स्वभाव में स्थिति करने में बडा सहयोग देती है । जैसे बनिये के लिए हर दिवाली हिसाब-किताब और नया कदम आगे बढाने के लिए है, ऐसे भी साधकों के लिए गुरुपूर्णिमा एक आध्यात्मिक हिसाब-किताब का दिवस है । पहले के वर्ष में सुख-दुःख में जितनी चोट लगती थी, अब उतनी नहीं लगनी चाहिए । पहले जितना समय देते थे नश्वर चीजों के लिए, उसे अब थोडा कम करके शाश्वत में शांति पायेंगे, शाश्वत का ज्ञान पायेंगे और शाश्वत ‘मैं' को मैं मानेंगे, इस मरनेवाले शरीर को मैं नहीं मानेंगे । दुःख आता है चला जाता है, सुख आता है चला जाता है, qचता आती है चली जाती है, भय आता है चला जाता है लेकिन एक ऐसा तत्त्व है जो पहले था, अभी है और बाद में रहेगा, वह मैं कौन हूँ ?... उस अपने ‘मैं' को जाँचो तो आप पर इन लोफरों के थप्पडों का प्रभाव नहीं पडेगा । इनके सिर पर पैर रखकर मौत के पहले अमर आत्मा का साक्षात्कार हो जाय, इसी उद्देश्य से गुरुपूनम होती है ।
गुरुपूनम का संदेश है कि आप दृढनिश्चयी हो जाओ सत् को पाने के लिए, समता को पाने के लिए । आयुष्य बीता जा रहा है, कल पर क्यों रखो ! संत कबीरजी ने कहा : जैसी प्रीति कुटुम्ब की, तैसी गुरु सों होय । कहैं कबीर ता दास का, पला न पकडै कोय ।। जितना इस नश्वर संसार से, छल-कपट से और दुःख देनेवाली चीजों से प्रीति है, उससे आधी अगर भगवान से हो जाय तो तुम्हारा तो बेडा पार हो जायेगा, तुम्हारे दर्शन करनेवाले का भी पुण्योदय हो जायेगा । * ऋषि प्रसाद, अंक २२२, जुन २०११
'ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनि सरस्वति मम जिह्वाग्रे वद वद ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नम: स्वाहा |'
इस मंत्र का 12 July 2014 को शाम 6 से 12 तक १०८ बार जप करें और रात्रि 11 से 12 बजे के बीच जीभ पर लाल चंदन से 'ह्रीं' मंत्र लिख दें | सोने की सलाई या चांदी की सलाई या पीपल की डंडी से लिख सकते है | जिसकी जीभ पर यह मंत्र इस विधि से लिखा जायेगा, उसे विद्यालाभ व विद्वत्ता की प्राप्ति होगी | लाल चंदन हेतु दिल्ली व अहमदाबाद आश्रम से सम्पर्क करें |
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